When the Sun shines then again a new day will arrives . Nature is on the Rock and creatures are set to start their life. This is going to be a new day or technically says another new day has been on the way to arrive.
Some cold whisper touches to skin which shows that atmosphere is going to be cold and our life is also being at the cold stage. The Sun is life extension but when will be our Sun come to extend my life stage ; no answer and deep quite .
Mumbai attack shows the reality in which we are living. It face a mirror to us for telling that what we are.
The world now believe that Terrorism have no face no any icon terrorism is only terrorism it can't be Praised or Condemn its only cure is to wash out totally with hard stand.
I alwayzz thinking on this that what can i do or what are the matters through which i need to cooperate or to fight. I am angry on Law and Order on my Govt, Law agencies and last but not least on our Political Leader.
Now its a time of action not for talk not for speak only and only action.
Firaq Gorakhpuri said.........
ye to nahii.n ke Gam nahii.n
haa.N merii aa.Nkh nam nahii.n
tum bhii to tum nahii.n ho aaj
ham bhii to aaj ham nahii.n
ab na Khushii kii hai Khushii
Gam kaa bhii ab to Gam nahii.n
maut agarche maut hai
maut se ziist kam nahii.n
And some reality of our Netas as per Ghalib........
koi ummid bar nahiin aati
koi surat nazar nahiin aati.
aage aati thi haale dil par hasi
ab kisi baat par nahiin aati
hum wahan hain, jahan se humko bhi
kucch hamaari khabar nahiin aati
kaabaa kis muh se jaaoge 'Ghalib'
sharm tumko magar nahiin aati
29 मई 1953 को एवरेस्ट फ़तह करने वाले एडमंड हिलेरी ने एक इतिहास रचा और बुलंद हौसलों और साहस का प्रतीक बन गए.
अपार जीवटवाले हिलेरी ने उसके बाद भी हिमालय की 10 और चोटियों की चढ़ाई की. वे उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर गए और जोखिम और विजय की संभावनाओं के कई दरवाज़े खोले.
लेकिन बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि एक समय वो भी आया था जब हिलेरी गंगा के आगे हार गए थे.
जोशीमठ और श्रीनगर के सरकारी दस्तावेज़ों में हिलेरी के इस अधूरे रह गए अभियान का ज़िक्र मिलता है. क़रीब 30 साल पहले 1977 में हिलेरी 'सागर से आकाश' नामक अभियान पर निकले थे.
हिलेरी का मक़सद था कलकत्ता से बद्रीनाथ तक गंगा की धारा के विपरीत जल प्रवाह पर विजय हासिल करना. इस दुस्साहसी अभियान में तीन जेट नौकाओं का बेड़ा था- गंगा, एयर इंडिया और कीवी.
उनकी टीम में 18 लोग शामिल थे जिनमें उनका 22 साल का बेटा भी था. हिलेरी का ये अभियान उस समय चर्चा का विषय बना हुआ था और सबकी निगाहें उस पर लगी थी कि हिमालय को जीतनेवाला क्या गंगा को भी साध लेगा.
हिलेरी की इस यात्रा को क़रीब से देखनेवाले आज भी उसे याद करके रोमांचित हो उठते हैं. वे कहते हैं कि हिलेरी कलकत्ता से पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर तक बिना किसी बाधा के पहुँच गए थे और उनका उत्साह और जोश चरम पर था.
उस समय श्रीनगर में उनका साक्षात्कार लेने वाले स्थानीय पत्रकार धर्मानंद उनियाल ने बताया, "हिलेरी 26 सितंबर 1977 को श्रीनगर पहुँचे थे और हिमायल के इस हीरो को देखने के लिए भीड़ उमड़ रही थी. हिलेरी यहाँ कुछ देर रुके लोगों से गर्मजोशी से मिले और उसी दिन अपनी जेट नाव पर सवार होकर बद्रीनाथ के लिए निकल पड़े. उनकी नावें बहुत तेज़ गति से जा रही थी."
हिलेरी का ये साक्षात्कार श्रीनगर की नगरपालिका की स्मारिका में भी देखा जा सकता है. धर्मानंद उनियाल ने उनसे पूछा, "क्या आप अपने मिशन में कामयाब हो पाएँगे?"
मन में था विश्वास
हिलेरी ने पूरे आत्मविश्वास से कहा था, "ज़रूर मेरा मिशन जरूर सफल होगा." श्रीनगर से कर्णप्रयाग तक गंगा की लहरों की चुनौतियाँ उन्हें ललकारती रहीं और वो उन्हें साधते हुए तेज़ी से आगे बढ़ते गए.
![]() | ![]() ![]() धर्मानंद उनियाल, स्थानीय पत्रका |
लेकिन नंदप्रयाग के पास नदी के बेहद तेज़ बहाव और खड़ी चट्टानों से घिर जाने के बाद उनकी नाव आगे नहीं बढ़ पाई. उन्होंने कई कोशिशें की और आख़िरकार हार मानना पड़ा.
इस तरह से एडमंड हिलेरी को बद्रीनाथ से काफ़ी पहले नंदप्रयाग से ही वापस लौटना पड़ा और 'सागर से आकाश तक' का उनका अभियान सफल नहीं हो पाया.
धर्मानंद उनियाल बताते हैं, "तब हिलेरी सड़क मार्ग से लौटे और धार्मिक आस्था रखनेवाले लोगों ने यही कहा कि गंगा माँ को जीतना सरल नहीं और गंगा माता ने उन्हें हरा दिया."
नंदप्रयाग में हिलेरी के इस अभियान का प्रतीक एक पार्क है जिसका नाम हिलेरी स्पॉट है. एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था के सचिव नंदनसिंह बिष्ट कहते हैं, "हिलेरी की यात्रा भले ही अधूरी रह गई हो लेकिन साहसिक अभियानों के लिए आज भी वे एक प्रेरणास्रोत हैं."
गंगा से हार जाने की ये कसक शायद हिलेरी के मन में आजीवन रही होगी और तभी जब वे 10 साल बाद दोबारा उत्तरकाशी के नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में आए तो उन्होंने विजीटर बुक में लिखा, "मनुष्य प्रकृति से कभी नहीं जीत सकता हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए."
ये वही हिलेरी थे जिन्होंने हिमालय पर चढ़ाई के बाद कहा था- हमने उस बदमाश का घमंड चूर कर दिया.
BHUBANESWAR: Wearing a helmet while riding a two-wheeler now gets an added incentive in the Orissa capital - a rose from a girl! This is part of a new scheme by the traffic police who want to create awareness about the importance of wearing helmets. Helping them are students of engineering colleges, who have volunteered to offer the roses to drivers using helmets.
On the flip side, those with found without helmets should be prepared for a 'rakhi' - a thread symbolising a brother-sister relationship - as opposed to the whiff of romance that a rose carries with it. "I will surely use a helmet now onwards," said Rabindra Mohanty, who was caught in the city's Rajmahal square while riding a scooter without a helmet on. "A girl tied a rakhi on my hand to remind me how unsafe I am," he added.
"I will feel offended if I am caught again by the same girl. That is why I have started wearing a helmet," he said.
Abhimanyu Mohapatra, a 20-year-old college student, said he was thrilled to get a rose from a girl. "I felt very happy when a beautiful girl gave a smile and handed me a rose because I was wearing my helmet," he said.
The traffic rule applies to women drivers too, with male students offering roses or tying rakhis instead in appropriate cases. The college students are posted at traffic signals. "I really felt insulted when a young man tied a rakhi on my wrist," said Rukmini Sahu, a college student. "I will wear a helmet from now on to avoid this unpleasant behavior," she added.
Orissa has a high mortality rate in road accidents. According to officials, at least 10 people die in the state every day in road accidents. Police said offenders do not wear helmets even if they are fined several times and that's why they had to think of a unique method.
Bhubaneswar-Cuttack Police Commissioner B.K. Sharma said traffic police collect fines of Rs.100 each from at least 200 to 300 people every day for not wearing helmets, but the number of offenders had not come down.
"Some do it as a fashion statement and some as a matter of habit even if you fine them," Sharma told IANS. "This is why we introduced this new method to motivate them," he said.
"We introduced this method Thursday and saw that the response was good," said Bhubaneswar Deputy Commissioner of Police Himanshu Lal. He said police would organise surprise checks twice a week. "On Thursday, the girls gave at least 4,000 flowers and tied rakhis on the hands of 2,000 riders who were not wearing helmets," police said. "It (the campaign) will positively have a psychological impact on offenders," said Ranjan Mohanty, secretary of the People's Cultural Centre, an NGO that has organised several traffic awareness campaigns in the city earlier.
अमेरिका इकॉनमी की दुनिया का ग़ालिब है। उनका एक शेर है- 'कर्ज की पीते थे मय...'। वैसे, इकॉनमी के इस फलसफे में अमेरिका ग़ालिब के उस शेर से भी थोड़ा आगे बढ़ गया है। कर्ज के मामले में वह मय तक ही सीमित नहीं रहा। पूरे बाजार को ही उसने कर्ज के खाते में डाल दिया। घर कर्ज पर। गाड़ी कर्ज पर। खाना-पीना कर्ज पर। कर्ज सिर्फ कर्ज नहीं रहा, अमेरिका की जीवन पद्धति बन गया।
अमेरिकी जीवन में एक रोचक संबंध बड़ा आम दिखाई देता है- 'लिव-इन रिलेशनशिप'। यह लिव-इन रिलेशनशिप कुछ और नहीं, उधार की शादी है। बड़ा आजाद संबंध है, जैसे ओपन इकॉनमी। जिस दिन लगे कि अब ज़िंदगी का बाकी उधार इस साथी के साथ नहीं चुकाना, तो उठाओ सूटकेस और खिसक लो। इस उधार की शादी में जो बच्चे पैदा हो जाएं, वे जिसके गले में पड़े रह जाएं, वही उनसे निपटे ब्याज की तरह।
हिंदुस्तान में एक कहावत चला करती थी- 'उधार प्रेम की कैंची है'। अमेरिका में उधार संबंध की पहचान बन गया। कौन था जिस पर किसी का कर्ज नहीं था। यहां बात एहसानों के कर्ज की नहीं, डॉलर के कर्ज की हो रही है। संबंध डॉलरों में बनने लगे। प्रेम डॉलरों में बरसने लगा - 'तुम उधार ले कर जितना खर्च करोगे, तुम्हारी प्रेमिका तुमसे उतना ही प्रेम करेगी। तुम उसे फूल दोगे, वह मुस्कराएगी। तुम उसे डिनर पर ले जाओगे, वह तुम्हारा चुंबन लेगी। तुम उसे हीरे का ब्रेसलेट दोगे, तो वह तुमसे शादी भले ही न करे, लेकिन शादी की कमी महसूस नहीं होने देगी।'
ग़ालिब कर्ज की मय पीते थे। शराब का सीधा संबंध उनके मूड से था। शायरी के मूड से। अमेरिका में कर्ज का सीधा संबंध मूड से ही है। बाजार के मूड से। ग़ालिब के कर्ज का फंडा सीधा सादा था : उधार लो और शराब पीओ। अमेरिका का फंडा भी सीधा सादा है : ग्राहक को कर्ज देकर ही वह माल खरीदेगा। ज्यादा कर्ज दो, वह ज्यादा माल खरीदेगा। ज्यादा माल बिकेगा तभी बाजार पनपेगा। बाजार पनपेगा तो अमेरिका पनपेगा।
कितना सरल फलसफा है - ग्राहक को उधार लेने के लिए उकसाओ। हर हालत में उधार दो। जरूरत हो तो उधार लेकर उधार दो। लोग कर्ज ले रहे थे। जिसे देखो वही कर्ज ले रहा था। बाजार बड़ा होता जा रहा था। समृद्धि के महल खड़े हो रहे थे। महल के खंभे मोटे और मजबूत दिखते थे। गुंबद बड़े शानदार थे।
लेकिन, अमेरिकी महल की पूरी नींव कर्ज पर टिकी थी। कर्ज की नींव पर खड़े महल को गिराने के लिए किसी भूकंप की जरूरत नहीं होती। बस, जरा सी मिट्टी खिसकना ही काफी होता है। कर्जदारों की इस लंबी श्रृंखला में बस किसी एक कड़ी के टूटने की देर थी। एक कमजोर कड़ी टूटी नहीं कि अमेरिकी मोतियों की माला बिखर गई।
ग़ालिब कर्ज लेते थे, शराब पीने के लिए। लोग उन्हें कर्ज दे भी देते थे। सब जानते हैं कि जो आदमी कर्ज लेकर शराब पीता है, वह कभी उधार चुका नहीं सकता। फिर भी लोग ग़ालिब को कर्ज देते थे। क्योंकि ग़ालिब में एक बहुत बड़ी खूबी थी कि वे शायरी लाजवाब करते थे। कर्ज देने वाले सोचते होंगे, 'ठीक है भई, ब्याज नहीं देता तो क्या हुआ, शेर तो बढ़िया कहता है। पैसे नहीं लौटाता, पर मन तो खुश कर देता है।'
क्या अमेरिकी बाजार ने कभी किसी का मन खुश किया? मन तो क्या खुश करता, अब सबका जीना जरूर दूभर कर रहा है। मेरे खयाल से ग़ालिब को उधार देना समाज की जिम्मेदारी थी, क्योंकि ग़ालिब संस्कृति को पोस रहे थे। संस्कृति को पोसने वालों के पास पैसों की कमी तो रहती है। वे पैसे भले ही उधार लेते हों, लेकिन इंसानियत के ऊपर एक बहुत बड़ा कर्ज छोड़ जाते हैं- सांस्कृतिक चेतना का कर्ज। ग़ालिब ने कहा था- 'कर्ज की पीते थे मय और समझते थे कि हां, रंग लाएगी हमारी फाकामस्ती एक दिन।'
ग़ालिब की फाकामस्ती से उपजा रंग तो आज तक चमचमा रहा है, जबकि अमेरिकी बाजार का कर्ज अब फाका करवाने की सोच रहा है।
कमरे में लगे बल्ब सिर्फ रोशनी देने का काम ही नहीं करेंगे। इनके उजाले से कंप्यूटर और फोन ही नहीं, कारों को भी इंटरनेट से जोड़ा जा सकेगा।
जैसे ही आप बल्ब का स्विच ऑन करेंगे, जहां-जहां लाइट होगी, वहां रखे कंप्यूटर या फोन में इंटरनेट नेटवर्क सक्रिय हो जाएगा। हालांकि, यह साधारण बल्ब नहीं होंगे। इसके लिए एलईडी (लाइट एमिटिंग डायोड) बल्बों का इस्तेमाल किया जाएगा। यह बल्ब बिजली की कम खपत करेंगे और बहुत लंबे समय तक चलेंगे।
लाइट से कम्यूनिकेशन
रोशनी के जरिए संचार कोई नई बात नहीं है। रोमन एक-दूसरे से संपर्क करने के लिए आग का इस्तेमाल करते थे। समुद्र में बने लाइट हाउस जहाजों को आने-जाने का रास्ता तलाशने में काफी समय से मदद करते रहे हैं। फिलहाल वायरलेस कम्यूनिकेशन रेडियो तरंगों के जरिए अपना रास्ता तय करता है। लेकिन अब रोशनी के जरिए कम्यूनिकेशन की संभावना तलाशी जा रही है। हाल ही में नासा और अमेरिकी आर्मी ने हाई स्पीड लेजर के जरिए कम्यूनिकेशन पर रिसर्च शुरू की है। लिटिल कहते हैं कि अलग-अलग तरह की वायरलेस डिवाइस के लिए अलग-अलग फ्रीक्वेंसी पर रेडियो तरंगें छोड़ी जाती हैं।
इनकी संख्या काफी ज्यादा होने के कारण इनका एक जाल सा बन जाता है, जिसमें एक फ्रीक्वेंसी का दूसरी फ्रीक्वेंसी की तरंगों में मिलने की आशंका पैदा हो जाती है। नेटवर्क भी बहुत तेज नहीं रह पाता। इसके उलट, लाइट से नेटवर्किन्ग तरंगों की इस भीड़ से अलग होगी। यह सीधी खास यूजर और डिवाइस तक नेटवर्क पहुंचाएगी। यह तरीका ज्यादा सेफ भी होगा।
ग्रीन वायरलेस नेटवर्क
लिटिल और उनके साथी रिसर्चरों ने एलईडी बल्बों के जरिए वायरलेस रूट पर प्रयोग शुरू कर दिया है। योजना के अगले चरण में दुनिया में एलईडी बल्बों का प्रसार बढ़ाया जाना है। इन बल्बों में ऊर्जा की खपत काफी कम होती है। एलईडी कंप्यूटर स्क्रीन से लेकर ट्रैफिक लाइटों तक बहुत सी जगह दिखाई देते हैं। हालांकि, एलईडी बल्बों का घरों में इस्तेमाल शुरू होने में थोड़ा वक्त लग सकता है क्योंकि यह काफी महंगा है। फिलहाल एक बल्ब की कीमत 30 डॉलर (करीब 1300 रुपये) है। हालांकि, यह आम बल्बों की तुलना में 50 गुना ज्यादा समय तक चलता है।
स्मार्ट हाउस, स्मार्ट कार
यह प्रयोग अमेरिका के शहरों में सस्ता वायरलेस नेटवर्क देने तक ही सीमित नहीं है। लिटिल लगभग हर चीज को स्मार्ट तरीके से वायरलेस सिस्टम से जोड़ने का मकसद लेकर चल रहे हैं। इसका इस्तेमाल वीइकल्स में भी किया जा सकता है। लिटिल कहते हैं कि ऑटो इंडस्ट्री में यह बेहद कारगर होगा। अमेरिका के कई स्टेट की सरकारें लिटिल की इस योजना में आर्थिक मदद दे रही हैं।
नोबेल फ़ाउंडेशन यूँ तो पूर्व में नामांकित लोगों के नाम गुप्त रखती है लेकिन अब उसने 1901 से लेकर 1956 तक नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित लोगों के नाम सार्वजनिक किए हैं. इस सूची के अध्ययन से पता चलता है कि 50 के दशक में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को 11 बार शांति पुरस्कार के लिए नामांकन मिला था. उन्हें 1950 में दो लोगों की ओर से नामांकित किया गया था. नोबेल फ़ाउडेशन की वेबसाइट के मुताबिक नेहरू ने भारत में संसदीय सरकार स्थापित करने में मदद की, वे आज़ादी की लड़ाई के प्रमुख नेताओं में से थे. उन्हें तटस्थ विदेश नीति और गांधीजी के मूल्यों पर चलने के लिए 1950 में शांति नोबेल के लिए नामांकित किया गया था. इस वर्ष का शांति पुरस्कार अमरीकी कूटनयिक राल्फ़ बूंचे को फ़लस्तीनी इलाक़ों में मध्यस्थता करने के लिए मिला था. ग्यारह बार हुआ नामांकन वर्ष 1951 में भी उन्हें तीन अलग-अलग लोगों ने नामांकित किया था जिस पर नोबेल समिति ने विचार किया. एक नामांकन 1946 में नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले अमरीका के एमिली ग्रीन बाल्च ने किया था. इस नामांकन का मूल्यांकन ओस्लो के प्रोफ़ेसर जेन्स अरूप सीप ने किया . पुरस्कार अंतत फ़्रांसीसी ट्रेड यूनियन नेता लिओन यूहॉक्स को मिला था. फिर 1953 में नेहरू को तीन बार शांति पुरस्कार के लिए नामांकन मिला. तीनों नामांकन बेल्जियम की ओर से आए थे- बेल्जियन नेशनल असेंबली के सदस्यों की तरफ़ से. इस वर्ष जॉर्ज सी मार्शल को शांति पुरस्कार मिला था जिन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में अमरीकी सेना का नेतृत्व किया था. वर्ष 1954 में नेहरू (और पूर्व ब्रितानी प्रधानंत्री एटली) को दो बार नामांकित किया गया. उन्हें प्रोफ़ेसर सीप ने ही दोनों बार नामांकित किया था. उन्हें 1947 में ब्रिटेन और भारत के बीच शांतिपूर्ण तरीके से हल निकालने के लिए नामांकन मिला था. आख़िरी बार नेहरू का नाम 1955 में नोबेल के लिए आगे बढ़ाया गया था. इस वर्ष किसी को भी शांति पुरस्कार नहीं दिया गया था. यानी कुल 11 बार नेहरू को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन मिला लेकिन वे कभी नहीं जीत पाए. भारत की ओर से महात्म गांधी को भी शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था लेकिन उन्हें ये पुरस्कार दिया नहीं गया. हाल ही में नोबेल फ़ाउंडेशन के कार्यकारी अध्यक्ष माइकल सोहलम ने अफ़सोस जताया था कि गांधीजी को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया.
भारत की ओर से न केवल महात्मा गांधी बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू भी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित हो चुके हैं-वो भी कुल 11 बार.
अमरीकी सरकार के कर्ज़े इतने बढ़ गए हैं कि न्यूयॉर्क में लगाई गई 'नेशनल डैटक्लौक' इतने बड़े आंकड़ों को जगह नहीं दे पा रही है
ये क्लौक एक डिजिटल काउंटर है जिसपर राष्ट्रीय कर्ज़ के आंकड़े लिखे जाते हैं और ताकि जनता ये जान सके की अमरीकी सरकार का कर्ज़ कितना हो गया है.
लेकिन जब ये कर्ज़ पिछले महीने 100 ख़रब डॉलर से ज़्यादा हो गया तो ये पूरी रकम डिजिटल काउंटर पर लिखने की जगह ही नहीं बची.
ये क्लौक लगाने वालों का कहना है कि दो शून्य और लगाने की जगह इस डिजिटल काउंटर बनानी होगी तभी अमरीका का पूरा राष्ट्रीय कर्ज़ इस पर लिखा जा पाएगा.
इस क्लौक के बोर्ड को 1989 में लगाया गया था जब 27 ख़रब डॉलर के कर्ज़ को इस पर दिखाया गया था.
इस क्लौक का अविष्कार सेयमर डर्स्ट ने किया था और उनके पुत्र डग्लस डर्स्ट का कहना है कि इस क्लौक में कुछ बदलाव किया जाएगा और अगले साल की शुरुआत में ये दोबारा सही आंकड़े दिखाना शुरु कर देगी.
फ़िलहाल डॉलर के इलैक्ट्रॉनिक आंकड़े की जगह एक अतिरिक्त आंकड़ा इस्तेमाल किया जा रहा है.
कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वित्तीय संकट को झेल रही अमरीकी अर्थव्यवस्था में सरकार के हाल में दिवालिया हुई कंपनियों को दिए 700 अरब डॉलर के पैकेज के बाद अमरीका का राष्ट्रीय कर्ज़ 110 ख़रब डॉलर हो जाएगा.
RAJKOT: By snatching the Nano plant, Gujarat has paid West Bengal back in its own coin. Given the strange ways in which history plays itself out,in 1948 Hindustan Motors had shifted its assembling plant for Ambassador from Okha in Jamnagar to Uttar Para in West Bengal.
Sixty years after the politicians' chariot drove from Gujarat to West Bengal, the 'Lakhtakia' common man's car has driven from West Bengal to Gujarat. Manshukh Barai, 66, former sarpanch of Okha, says the assembling plant was initiated by CK Birla group in 1942 with cars being exported to some Asian countries apart from the Indian market.
"In 1948, the Birla group decided to manufacture the car indigenously and shifted Okha plant to West Bengal because it provided cheaper raw material - iron and steel," he says. Also, Rajkot was not an engineering hub then
The land and general manager's bungalow, which alone is spread over 50,000 square feet, is today owned by Rajkot's Davda family. Dipak Davda, a customs clearance agent and one of the owners of the property, says his father Tulsidas Davda had purchased the plant from Hindustan Motors when Birlas moved out. The general manager's bungalow, a heritage property, has been rented to coast guards while the land has been rented to industrial units.
Interestingly, Okha was part of Amreli district then which was under the erstwhile Baroda state. Sayajirao Gaekwad, who was the king, had wooed Birlas to set up the plant at Okha. "The Ambassador plant was just an assembling unit. When it left, it did not have any major economic impact on the region," Davda adds."It is a strange feeling to see history being played out in reverse. We are very happy to see Nano driving into Gujarat."
न्यूयार्क। अमेरिका की टाइम पत्रिका ने पंजाब की प्रदूषित काली बीन नदी को साफ करने का अभियान चलाने वाले बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल को दुनिया भर से चुने गए 30 हीरोज आफ एन्वायरनमेंट या पर्यावरण नायक में जगह दी है। अमेरिकी पत्रिका ने सीचेवाल की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने एक आंदोलन छेड़ा जिसमें लोगों को सिखाया गया कि उन्हें क्यों काली बीन नदी की सफाई करनी चाहिए। सीचेवाल ने टाइम से कहा कि हमने साबित कर दिया कि अगर हम एक साथ आ जाएं तो अपनी नदियों का पुराना स्वरूप बहाल करना संभव है। उन्होंने कहा कि यह समय है कि हम इसे बड़े पैमाने पर अंजाम दें। काली बीन होशियारपुर जिले में बहने वाली 160 किलोमीटर लंबी नदी है। छह से ज्यादा नगरों और 40 गांव के लोग इसमें अपना कूड़ा डालते रहे हैं। इससे यह एक गंदे नाले में बदल गई थी। नतीजतन आस-पास के खेतों को पानी नहीं मिल पाता था। सीचेवाल और उनके अनुयायीयों ने इसकी सफाई के लिए अभियान छेड़ा। उन्होंने इसके लिए कोष संग्रह किए। सीचेवाल और उनके अनुयाइयों की मेहनत रंग लाई। कुछ साल पहले काली बीन का पुराना स्वरूप बहाल हो गया। अब यह एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल है। सिखों की मान्यता है कि गुरू नानक देव को 500 साल पहले काली बीन नदी में डुबकी लगाने से ज्ञान प्राप्त हुआ था। टाइम ने लिखा है कि वर्ष 2000 में सिख धर्मगुरू सीचेवाल नदी की गंदगी साफ करने निकले। कार्यभार विराट था। स्वंयसेवकों ने नदी के समूचे तल को गाद और लतरों से मुक्त कराया। उन्होंने तटों का निर्माण किया और नदी के किनारे-किनारे सड़कें बनाई। सीचेवाल ने लोगों के बीच जनजागृति अभियान चलाया। इसके तहत लोगों से अपना कूड़ाकरकट कहीं और डालने को कहा गया। कुछ लोगों ने इसके लिए पारंपरिक तरीके भी अपनाए।
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ [आयूसीएन] ने बार्सिलोना में अपने विश्व सम्मेलन में सोमवार रात रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसके मुताबिक सूची में 20वें स्थान तक किसी अन्य विकसित देश का नाम नहीं है। वहीं इटली, फ्रांस, अमेरिका और जापान सहित नौ अन्य देशों में जंतुओं की प्रजातियों में से एक प्रतिशत से कम विलुप्त हुए हैं। आयूसीएन ने 2004 में जारी की गई खतरे की सूची में छठे स्थान पर रहे आस्ट्रेलिया की स्थिति में सुधार नहीं होने पर चिंता जताई। दक्षिण आस्ट्रेलिया प्राणी उद्यान के मुख्य कार्यकारी क्रिस वेस्ट ने कहा कि यह गंभीर बात है कि जोखिम में पड़े जंतुओं के मामले में हम उसी जगह पर हैं। फ्लाइंडर एवं एडीलेड विश्वविद्यालयों के एक जैव विविधता विषय के विशेषज्ञ वेस्ट ने बताया कि इसके बाद से सिलेटी रंग की चुहिया विलुप्त हो गई है और उन तीन छोटे देशज स्तनधारी जंतुओं को अब खतरे की सूची में गंभीरता से लिया जा सकता है, जो विलुप्त होने की कगार पर हैं। कुत्ते की तरह दिखने वाला ताकतवर मांसाहारी जीव तस्मानियन डेविल का नाम 2004 के खतरे की सूची में नहीं था, लेकिन अब इसे खतरे की सूची में शामिल कर लिया गया है। इसकी संख्या में 10 वर्षो में 60 फीसदी की गिरावट हुई है। सूची में 18 प्रतिशत के साथ हैती सबसे ऊपर है, जबकि क्यूबा और मारिशस में यह दर नौ प्रतिशत एवं रियुनियन में सात प्रतिशत है। आयूसीएन की नई सूची को 130 देशों के 1700 से अधिक विशेषज्ञों ने तैयार किया है। आस्ट्रेलिया के दौरे पर आई वानर प्रजाति विशेषज्ञ और संरक्षक जेन गुडआल ने बताया कि चिम्पांजी, गुरिल्ला और बंदरों की प्रजातियों को सबसे अधिक खतरा है। व्हेल, डालफिन और समुद्री गाय भी विलुप्त होने के कगार पर हैं। आयूसीएन ने यह भी पाया है कि भूमि के स्तनधारी जंतुओं की विलुप्ति के खतरे का कारण उनके आवास स्थान की कमी और उनका अत्यधिक शिकार है, जबकि समुद्री स्तनधारी जंतुओं को प्रदूषण और मछली पकड़ने के कार्य से सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। सर्वेक्षण का ब्योरा इस हफ्ते विज्ञान पत्रिका में दिया जाएगा। उसमें कहा गया है कि कुल मिलाकर जमीन में रहने वाली दुनिया के स्तनपायी प्रजातियों में चार में से एक तथा समुद्र में रहने वाले स्तनपायी प्रजातियों में तीन में से एक विलुप्ति के कगार पर है।
मेलबर्न। पृथ्वी पर विलुप्त होने वाले स्तनधारी जंतुओं के मामले में विकसित देशों में आस्ट्रेलिया सबसे ऊपर है। एक समाचारपत्र ने बताया कि भूमि और समुद्र के 5,487 जंतुओं पर किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि आस्ट्रेलिया इस लिहाज से जमैका और प्यूरिटो रिको के साथ छठे स्थान पर है। वहां स्तनधारी जंतुओं में से छह प्रतिशत विलुप्त हो चुके हैं अथवा होने वाले हैं।
यह कहानी तो कुछ-कुछ यश चोपड़ा की फिल्म 'कभी कभी' जैसी है। सरला देवी रविंद्र नाथ ठाकुर की भतीजी थीं। उनके पति चौधरी रामभज दत्त आर्य समाज और कांग्रेस में अच्छी पैठ रखते थे। वह जब जेल में थे तो गांधी जी उनकी पत्नी के मेहमान थे, उनके घर में। चार बच्चों के पिता 50 वर्षीय गांधी खूबसूरत सरला देवी पर ऐसे मोहित हुए कि उनका अपना परिवार और राजनीतिक जीवन तक खतरे में आ गया। गांधी जी के पोते के मुताबिक दोनों ओर से मोहब्बत की शिद्दत बराबर थी। गांधी जी ने तो कहा था कि सरला के साथ उनका 'अध्यात्मिक विवाह' हो चुका है। लेकिन दोनों ने ही अपनी आत्मकथा में इस प्रसंग का जिक्र नहीं किया है। आखिर इस प्रेम की परिणति 'कभी कभी' की तरह हुई। सरला के बेटे दीपक चौधरी ने गांधी जी की बेटी से विवाह कर लिया।
लोग कहते हैं इस लव स्टोरी ने भारत के इतिहास को प्रभावित किया है। लेडी माउंटबेटन की बेटी पामेला ने अपनी एक किताब में लिखा है कि दोनों के बीच रुहानी संबंध था। साथ ही वह यह भी कहती हैं कि कई बार मेरी मौजूदगी उन दोनों के लिए असहजता की स्थिति पैदा कर देती थी। दोनों घंटों तक कमरे में अकेले रहते थे। लॉर्ड माउंटबेटन भी दोनों को अकेला छोड़ देते थे। लेकिन यह साबित कोई नहीं कर पाया कि दोनों में शारीरिक संबंध थे। वैसे कुछ चीजें साबित करने के लिए नहीं होती।
हाल ही में श्याम बेनेगल ने नेता जी पर फिल्म बनाई तो मुद्दा खड़ा हो गया उनकी शादी का। उससे पहले बहुत कम लोग जानते थे कि नेता जी की शादी हो गई थी। अजीब प्रेम कहानी थी यह भी। एमिली नेता जी की सेक्रेटेरियल असिस्टेंट के रूप में काम करती थीं। उन्हें जर्मन सरकार ने नेता जी पर नजर रखने का हुक्म दिया। इससे नेता जी को चाहने वाली एमिली के सामने नैतिक सवाल खड़ा हो गया। और इसका हल भी उन्होंने खोज लिया, नेता जी से शादी। जर्मन कानून के मुताबिक पत्नी की गवाही मायने नहीं रखती। नेता जी को उनसे एक बेटी भी मिली। इस तरह एक और प्रेम कहानी अमर हो गई।
इतिहास के सबसे बड़े और क्रूर तानाशाह की प्रेमिका होना कोई आसान बात नही। इवा के लिए भी यह आसान नहीं था। एक अमीर बाप की बेटी इवा ब्राउन उस शख्स के प्यार में उस कदर पागल थीं कि उसने कुछ नहीं चाहा। हिटलर ने कभी इवा को सम्मान नहीं दिया, हक नहीं दिया। वह उनके लिए सिर्फ एक इस्तेमाल की चीज बनी रही। लेकिन इवा ने कभी हिटलर को नहीं छोड़ा। साये की तरह वह दीवानी हिटलर का साथ देती रही। और कहते हैं कि जब रूसी फौजें बर्लिन में घुसीं, तो इवा और हिटलर ने एक दूसरे के सामने आत्महत्या कर ली। उफ्फ..क्या लव स्टोरी है।
मोहब्बत कैसे जिंदगी बदल देती है, इसकी कहानी है राजीव और सोनिया की लव स्टोरी। राजीव लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनटी कॉलेज में पढ़ने गए थे। उसी यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ लैग्वेजेज में इटली की एक लड़की पढ़ रही थी। गरीब घर की वह लड़की पढ़ने के लिए पैसे जुटाने के वास्ते एक रेस्ट्रॉन्ट में काम करती थी। राजीव को वह लड़की बहुत पसंद थी। बस, धीरे-धीरे जवां दिल एक-दूजे के हो गए। कैथलिक सोनिया के मां-बाप ने इस रिश्ते का जमकर विरोध किया, तो सोनिया अपनी दुनिया छोड़कर एक नई दुनिया में चली आई अपने महबूब के साथ। फिर उसने देखा राजनीति के नाम होने वाली हत्याओं का खेल। बताते हैं कि सोनिया कभी राजीव को अकेले कहीं नहीं जाने देती थीं। एक बार वह अकेले श्रीलंका चले गए तो उनपर हमला भी हो गया था। एक बार फिर राजीव अकेले चले गए एक रैली में। और फिर लौटकर नहीं आए। सोनिया आज भी वे जिम्मेदारियां निभा रही हैं, जो उनकी मोहब्बत के नाम पर उन्हें मिली हैं।
प्रिंस एडवर्ड और वैलिसा सिंपसन
इश्क के लिए तख्त-ओ-ताज न्योछावर कर देने की मिसाल शायद यहीं से पैदा हुई होगी। प्रिंस यूं तो बांके जवान थे लेकिन शादीशुदा महिलाओं में उनकी खास दिलचस्पी थी। इस दिलचस्पी ने कई कहानियां बनाई। और इसी दिलचस्पी ने उन्हें एक दिन अमेरिका की एक गरीब सी महिला वैलिसा के सामने ला खड़ा किया। दोनों मिले। फिर मिले। बार-बार मिले। और पता नहीं कब प्यार हो गया। प्रिंस एडवर्ड तब ताज संभालने की भी तैयारी कर रहे थे। दोनों के किस्से चर्चित हो गए। सिंपसन ने अपने दूसरे पति को भी तलाक दे दिया। लेकिन यह साफ हो गया कि ब्रिटेन वैलिसा को रानी के रूप में स्वीकार नहीं करेगा। एडवर्ड को मोहब्बत और ताज में से एक चुनना था। उन्होंने मोहब्बत चुनी। कितने ही लोगों को उससे पहले और उसके बाद ताज मिला, किसे याद है। हां, एडवर्ड बहुत से लोगों को याद हैं।
1970 में एक पोलो मैच में कैमिला और प्रिंस चार्ल्स मिले। कुछ दिन दिल धड़कते रहे और फिर 1972 में जुदा हो गए। प्रिंस ने नेवी जॉइन कर ली और कैमिला ने शादी कर ली। 1981 में प्रिंस की भी शादी हो गई, लेकिन पार्कर से उनका संपर्क बना रहा। 1994 में प्रिंस ने कहा कि अब भी उनके कैमिला से रिश्ते हैं। इससे दोनों शादियां बर्बाद हो गईं। सात महीने बाद ही कैमिला का तलाक हो गया। अगस्त 1996 में प्रिंस और डायना भी अलग हो गए। और 1997 में डायना चल बसीं। आखिरकार 2005 में दो प्रेमी मिल ही गए। 25 साल बाद मोहब्बत अपने अंजाम पर थी।
नैपोलियन के एक अफसर बरास की पत्नी थी रोज। नैपोलियन तब पत्नी की खोज में था और बरास रोज से छुटकारा चाहता था। उसने रोज को नेपोलियन की तारीफ करने और उसके साथ रहने को कहा। रोज की थोड़ी सी लुभावनी बातों से नैपोलियन पिघल गया। उसे प्यार हो गया। बरास ने रोज को कहा कि मैं तुम्हें छोड़ दूंगा तो तुम सड़क पर आ जाओगी, इसलिए नैपोलियन से शादी कर लो। मजबूरी में रोज ने नैपोलियन से शादी कर ली। नैपोलियन ने ही उसे जोसेफिन नाम दिया। लेकिन जोसेफिन तो नैपोलियन को नहीं चाहती थी। जब नैपोलियन लड़ाई के लिए इटली गया तो वह फ्रांस में ही रह गई। पीछे से उसने अपनी अय्याशियां शुरी कर दी। नैपोलियन ने उसे कई बार अपने पास बुलाया, लेकिन वह रोज नए बहाने बना देती। उसने यहां तक कह दिया कि मैं प्रेग्नेंट हूं इसलिए नहीं आ सकती। जब बरास को लगा कि नैपोलियन इसके चक्कर में लड़ाई छोड़कर ना आ जाए तो उसने जबर्दस्ती जोसेफिन को इटली भेजा। जोसेफिन ने नैपोलियन से कहा कि रास्ते में उसका गर्भ गिर गया। नैपोलियन फूट-फूट कर रोया। कुछ दिन बाद नई लड़ाई के लिए वह फिर फ्रांस से बाहर चला गया और जोसेफिन की अय्याशियां शुरू हो गई। और जो होना था, एक दिन नैपोलियन को पता चल गया। वह फ्रांस लौटा। उसने कहा कि तुमने मेरा दिल तोड़ा है। अब मैं किसी से कभी प्यार नहीं कर पाऊंगा। जोसेफिन शर्म से पानी-पानी हो गई। उसके बाद जिंदगी पलट गई। ताउम्र जोसेफिन नैपोलियन के प्यार में मरती रही और नैपोलियन अय्याश हो गया। आखिर तक उसने जोसेफिन को माफ नहीं किया।
एंटनी और
क्लियोपेट्रा रोम के सम्राट जूलियस सीजर की रखैल थी। बताते हैं कि इतिहास की सबसे मशहूर औरतों में से एक क्लियो मैथ्स की विद्वान थी और 9 भाषाएं जानती थी। उसकी इंटेलिजेंस और नॉलेज का सीजर भी कायल था। वही क्लियोपेट्रा सीजर एक दोस्त एंटनी को दिल दे बैठी। दोनों एक-दूसरे के दीवाने हो गए थे। लेकिन राजनीति को यह मोहब्बत मंजूर नहीं थी। मिस्र की बढ़ती ताकत से परेशान रोम के लोग मिस्र की एक औरत को एंटनी की पत्नी बनते नहीं देखना चाहते थे। इसलिए साजिश रची गई। एंटनी को लड़ाई के दौरान झूठी खबर दी गई कि क्लियोपेट्रा नहीं रही। खबर सुनते ही एंटनी सदमे में आ गया और अपनी तलवार पर गिरकर मर गया। यह खबर जब क्लियोपेट्रा को मिली, तो उसने खुद को एक जहरीले सांप के आगे डाल दिया। सांप के जहर से फौरन उसकी मौत हो गई। मोहब्बत करने वाले शहीद हो गए, मोहब्बत आज भी जिंदा है।
सन 1612 में 15 साल के मुगल शहजादे ने एक और शादी की। लड़की थी अर्जुमंद बानो। यूं तो उसके बाद भी शहजादे ने कई शादियां कीं, लेकिन बानो में कुछ ऐसा था कि शहजादा उसका दीवाना था। उसने बानो को नाम दिया था। मुमताज। 1629 में मुमताज की बच्चे को जन्म देते हुए मौत हो गई। उससे पहले वह 14 बच्चों को जन्म दे चुकी थीं। मुमताज की मौत ने शाहजहां को हिलाकर रख दिया। उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया। कई दिन बाद जब बादशाह बाहर निकला, तो वह बूढ़ा हो चुका था। उसके बाद उसके सिर पर बस मुमताज को अमर कर देने की धुन सवार हो गई। उसने दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत बनाने का हुक्म जारी कर दिया। 20 हजार लोग और एक हजार हाथी 20 साल तक लगातार काम करते रहे और तब जाकर वह इमारत खड़ी हुई, जिसे लोग ताजमहल कहते हैं। फिर शाहजहां भी चल बसा। मोहब्बत अमर हो गई