...जो डर गया समझो मर गया, अब तेरा क्या होगा कालिया जैसे संवाद जेहन में आते ही जो तस्वीर उभरती है वह है भारतीय सिनेमा जगत के अजीम खलनायक अमजद खान की जिन्होंने अपनी जबरदस्त अदाकारी की बदौलत लगभग तीन दशकों तक दर्शकों को अपना दीवाना बनाए रखा।
अमजद खान ने करीब तीन दशक के फिल्मी करियर में करीब 130 फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। फिल्म शोले में उनका निभाया किरदार गब्बर सिंह तो उनके नाम का पर्याय ही बन गया था। उनका संवाद ..जो डर गया समझो मर गया आज भी बहुत लोकप्रिय है और गाहे बगाहे लोग इसे बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं। 12 नवंबर 1940 को हैदराबाद में जन्मे अमजद खान को अभिनय की कला विरासत में मिली। उनके पिता जयंत फिल्म इंडस्ट्री में खलनायक रह चुके थे। अमजद खान ने बतौर कलाकार अपने अभिनय जीवन की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म ..अब दिल्ली दूर नहीं से की। इस फिल्म में अमजद खान ने बाल कलाकार की भूमिका निभाई। सत्तर के दशक में अमजद खान ने मुंबई से अपनी कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद बतौर अभिनेता काम करने के लिए फिल्म इंडस्ट्री का रुख किया। वर्ष 1973 में बतौर अभिनेताउन्होंने फिल्म हिंदुस्तान की कसम से अपने करियर की शुरुआत की लेकिन इस फिल्म से दर्शकों के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके।
अमजद खान की पसंद के किरदार की बात करें तो उन्होंने सबसे पहले अपना मनपसंद और कभी भुलाए नहीं जा सकने वाला किरदार रमेश सिप्पी की वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म शोले में निभाया। वर्ष 1975 में अपनी पिछली फिल्म की सफलता से उत्साहित रमेश सिप्पी मारधाड़ से भरपूर फिल्म बनाना चाहते थे। इस फिल्म में नायक के रूप में धर्मेद्र कुमार, अमिताभ बच्चन और संजीव कुमार का चयन हो चुका था, जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप में ऐसे कलाकार की मांग थी जो फिल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे। इस किरदार के लिये निर्देशक रमेश सिप्पी ने अमजद खान जैसे नए कलाकार का चुनाव किया। जो फिल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फिल्म में अमजद खान द्वारा निभाए गए किरदार का नाम था गब्बर सिंह और यही नाम इस फिल्म के बाद उनकी पहचान बन गया।
फिल्म शोले में नायक को मात करने वाले अमजद खान के कुछ डायलाग इतने लोकप्रिय हुए कि उसका साउंडट्रैक भी निकाला गया। इन्होंने फिल्म शोले में ..अरे ओ सांबा, सरकार ने मुझ पर कितना इनाम रखा है, ..जब रात को बच्चा नहीं सोता है तो मां कहती बेटा सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा और ..कितने आदमी थे को जबरदस्त सफलता मिली।
फिल्म शोले की सफलता से अमजद खान के सिने करियर में जबरदस्त बदलाव और वह खलनायकी की दुनिया के बेताज बादशाह बन गए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने दमदार अभिनय से दर्शकों की वाहवाही लूटने लगे। वर्ष 1977 में प्रदर्शित फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में उन्हें महान निर्देशक सत्यजीत रे के साथ काम करने का मौका मिला। इस फिल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शकों का मन मोहे रखा। बरहराल धीरे-धीरे उनके करियर की गाड़ी बढ़ती गई और उन्होंने हम किसी से कम नहीं [1977], परवरिश [1977], कस्मे वादे [1978], देश परदेस [1978] जैसी कई सफल फिल्मों के जरिए दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाते गए। अपने अभिनय में आई एकरूपता को बदलने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए अमजद खान ने अपनी भूमिकाओं में परिवर्तन भी किया। इसी क्रम में वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिरोज खान की सुपरहिट फिल्म कुर्बानी में अमजद खान ने हास्य अभिनय कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
वर्ष 1981 में अमजद खान के अभिनय का नया रूप दर्शकों के सामने आया। प्रकाश मेहरा की सुपरहिट फिल्म लावारिस में वह फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के पिता की भूमिका निभाने से भी नहीं हिचके, हालांकि अमजद खान ने फिल्म लावारिस से पहले अमिताभ बच्चन के साथ कई फिल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई थी पर इस फिल्म के जरिए भी अमजद खान दर्शकों से वाहवाही लूटने में सफल रहे।
वर्ष 1981 में प्रदर्शित फिल्म याराना में उन्होंने सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के दोस्त की भूमिका निभाई। इस फिल्म में उन पर फिल्माया यह गाना .बिशन चाचा कुछ गाओ बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसी फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए अमजद खान अपने सिने करियर में दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ सह कलाकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। इसके पहले भी वर्ष 1979 में भी उन्हें सर्वश्रेष्ठ सह कलाकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा वर्ष 1985 में फिल्म मां कसम के लिए अमजद खान सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। निर्माता निर्देशक मनमोहन देसाई के साथ उनकी जोड़ी काफी सराही गई। मनमोहन देसाईके साथ अमजद खान ने सुहाग, परवरिश, नसीब, देशप्रेमी जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में अभिनय किया। मनमोहन देसाई के अलावा उनके पसंदीदा निर्माता-निर्देशक में प्रकाश मेहरा, नासिर हुसैन प्रमुख रहे।
खलनायक की प्रतिभा के निखार में नायक की प्रतिभा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इसी कारण महानायक अमिताभ बच्चन के साथ अमजद खान के निभाए किरदार और अधिक प्रभावी रहे। उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ शोले, मुकद्दर का सिकंदर, परवरिश, सुहाग, लावारिस, मिस्टर नटवर लाल, याराना, नसीब, कालिया, सत्ते पेसत्ता जैसी अनेक कामयाब फिल्मों में काम किया। वर्ष 1983 में अमजद खान ने फिल्म चोर पुलिस के जरिए निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया, लेकिन यह फिल्म बॉक्स आफिस पर बुरी तरह से नकार दी गई। इसके बाद वर्ष 1985 में भी अमजद खान ने फिल्म अमीर आदमी गरीब आदमी का निर्देशन किया, लेकिन यहां पर भी उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा। 90 के दशक में अमजद खान ने स्वास्थ्य खराब रहने के कारण फिल्मों में काम करना कम कर दिया। अपनी अदाकारी से लगभग तीन दशक से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करने वाले अजीम अभिनेता अमजद खान 27 जुलाई 1992 को इस दुनिया से रुखसत हो गए।
आपकी नजरों ने समझा..
आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे, दिल की ए धड़कन संभल जा मिल गई मंजिल मुझे..जैसे सदाबहार गीत लिखने वाले राजा मेहदी अली खान ने प्रेम विरह और देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत अपने गीतों से लगभग चार दशक तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।
करमाबाद शहर में एक जमींदार परिवार में पैदा हुए राजा मेहदी अली खान चालीस के दशक में आकाशवाणी दिल्ली में काम करते थे। दिल्ली में आकाशवाणी की नौकरी छोड़ कर वह मुंबई आए और यहां अपने मित्र के प्रयास से उन्हें अशोक कुमार की फिल्म एट डेज में उन्हें डायलॉग लिखने का काम मिल गया।
चालीस के दशक में उर्दू साहित्य के लेखन की एक सीमा निर्धारित थी। राजा मेहदी अली खान ने धीरे-धीरे उन्होंने उर्दू साहित्य की बंधी-बंधाई सीमाओं को तोड़ा और अपने लेखन का अपना अलग अंदाज बनाया। अपने लेखन की नई शैली की वजह से वह कुछ हीं समय में लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हो गए।
वर्ष 1945 में उनकी मुलाकात फिल्मिस्तान स्टूडियो के मालिक एस मुखर्जी से हुई। राजा मेहदी अली खान में एस मुखर्जी को फिल्म इंडस्ट्री का उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया। उन्होंने उनसे फिल्म दो भाई के लिए गीत लिखने की पेशकश की। फिल्म दो भाई में अपने रचित गीत मेरा सुंदर सपना बीत गया..की कामयाबी के बाद बतौर गीतकार राजा मेहदी अली खान फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।
वर्ष 1947 में विभाजन के बाद देश भर में हो रहे सांप्रदायिक दंगों को देख कर राजा मेहदी अली खान का मन विचलित हो गया। उनके कई रिश्तेदार ने उनसे नवनिर्मित पाकिस्तान चलने को कहा, लेकिन राजा मेहदी अली खान का मन इस बात के लिए तैयार नहीं हुआ और उन्होंने आजाद हिन्दुस्तान में ही रहने का निश्चय किया।
देश के वीरों को श्रद्धांजलि देने के लिए उन्होंने फिल्म शहीद के लिए वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हो. की रचना की। देशभक्ति के जज्बे से परिपूर्ण फिल्म शहीद..का यह गीत आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है।
वर्ष 1950 तक राजा मेहदी अली खान फिल्म इंडस्ट्री में बतौर गीतकार स्थापित हो चुके थे और फिल्म इंडस्ट्री में उनकी तूती बोलने लगी थी। फिल्म इंडस्ट्री में ऊंचे मुकाम में पहुंचने के बावजूद राजा मेहदी अली खान को किसी बात का घमंड नहीं था। उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि वह नए संगीतकार के साथ काम कर रहे हैं या फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज संगीतकार के साथ।
उन्होंने वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म मदहोश के जरिये अपने संगीत कैरियर की शुरूआत करने वाले मदन मोहन के साथ भी काम करना स्वीकार कर लिया।
मदन मोहन के अलावा राजा मेहदी अली खान ने इकबाल कुरैसी, बाबुल, एस मोहन्दर जैसे नए संगीतकार को फिल्म इंडस्ट्री में पेश किया। फिल्म मदहोश के बाद मदन मोहन राजा मेहदी अली खान के चहेते संगीतकार बन गए। इसके बाद जब कभी राजा मेहदी अली खान को अपने गीतों के लिए संगीत की जरूरत होती थी, तो वह मदन मोहन को ही काम करने का मौका दिया करते थे।
मदन मोहन ने अपने संगीत निर्देशन से राजा मेहदी अली खान रचित जिन गीतों को अमर बना दिया, उनमें आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे [अनपढ़] 1962, लग जा गले कि फिर हंसी राज हो ना हो [वो कौन थी] 1964, नैनो में बदरा छाये, मेरा साया साथ होगा [मेरा साया] 1966 जैसे गीत श्रोताओं के बीच आज भी उतनी हीं शिद्दत के साथ सुने जाते हैं। राजा मेहदी अली खान ने अपने गीतों में आप शब्द का इस्तेमाल बहुत हीं खूबसूरती से किया है।
इन गीतों में आप यूं ही हमसे मिलते रहे देखिये एक दिन प्यार हो जाएगा [एक मुसाफिर एक हसीना] 1960, आपके पहलू में आकर रो दिये, [मेरा साया] 1966, आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे [अनपढ़] 1962, आपको राज छुपाने की बुरी आदत है [नीला आकाश] 1965 जैसे कई सुपर हिट गीत शामिल हैं।
पचास के दशक में राजा मेहदी अली खान के रूमानी गीत काफी लोकप्रिय हुए थे। इस दौर में स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने गीतकार राजा मेहदी अली खान के लिए कई गीत गाए। इन गीतों में आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे [अनपढ़], जो हमने दास्तां सुनाई आप क्यों रोये नैना बरसे रिमझिम रिमझिम [वो कौन थी] 1964, आपने अपना बनाया मेहरबानी आपकी [दुल्हन एक रात की] 1966, अगर मुझसे मोहब्बत है [आप की परछाइयां] 1964, तू जहां जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा [मेरा साया] 1966 जैसे न भूलने वाले गीत शामिल हैं।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी राजा मेहदी अली खान ने कई कविताएं और कहानियां भी लिखी, जो नियमित रूप से बीसवीं सदी, खिलौना, शमा बानो जैसी पत्रिकाओं में छपा करती थी। सत्तर के दशक में राजा मेहदी अली खान ने फिल्मों के लिए गीत लिखना काफी कम कर दिया। अपने गीतों से लगभग चार दशक तक श्रोताओं को भावविभोर करने वाले महान गीतकार राजा मेहदी अली खान 29 जुलाई 1996 को इस दुनिया से रुखसत हो गए।